Monday 27 July 2020

Desire of Unknown - अज्ञात की इच्छा

अज्ञात की इच्छा

                 व्यक्ति केसे जान पाए की अज्ञात की इच्छा क्या है यह कभी जाना नहीं जा सकता है हां यह
जरुर किया जा सकता है की हम अपने आप को अज्ञात के साथ एक कर दे  अपने को छोड़ दे मिटा दे तो हम जान सकते है तत्काल जान सकते है की अज्ञात की इच्छा क्या है अज्ञात के साथ एक हो जाता है मनुष्य 

                 बूंद नहीं जान सकती की सागर क्या है जब तक की वह अपने आप को सागर में खो न जाये व्यक्ति नहीं जान सकता की परमात्मा की इच्छा क्या है जब तक वह व्यक्ति अपने को व्यक्ति बनाये रखता है अपना अलग वजूद रखता है जब व्यक्ति अपने को खो दे परमात्मा में विलीन कर दे अपनी कोई इच्छा न रखे तो फिर केवल परमात्मा की इच्छा ही शेष रह जाती है  तब व्यक्ति वेसे ही जीता है जेसे अज्ञात उसे जिलाता है 

               जब तक व्यक्ति है तब तक अज्ञात क्या चाहता है नहीं जाना जा सकता और जब व्यक्ति नहीं है तब जानने की जरुरत नहीं है जो भी होता है अज्ञात ही करवाता है तब व्यक्ति केवल एक साधन मात्र रह जाता है कृष्ण पूरी गीता में अर्जुन को यही समझाते है की वह अपने को छोड़ दे खुद को अज्ञात को अज्ञात के हाथों में समर्पित कर दे क्यूंकि वह जिन्हें मरने के बारे में सोच कर भावविहल हो रहा है वो तो पहले ही अज्ञात के हाथों मरे जा चुके है 

              हाँ अगर वह अपने को बचाता है और इस कार्य से विमुख होता है तो अर्जुन जिम्मेदार होगा उस सब के लिए जो इसके पश्चात होगा अगर वह अपने को छोड़ कर केवल साधन के रूप में कार्य करता है तो उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी व्यक्ति अपने को खो दे अपने को समर्पित कर दे तो अज्ञात यानि परमात्मा की इच्छा ही फलित होगी 

             परमात्मा की इच्छा अभी भी फलित हो रही है  ऐसा नहीं है की हम उससे भिन्न फलित करा लेंगे लेकिन हम इसके लिए लड़ेंगे, टूटेंगे और नष्ट होंगे और अपयश को प्राप्त होंगे 

             व्यक्ति परमात्मा की इच्छा के बिना कुछ नहीं कर सकता लेकिन लड़ सकता है विरोध कर सकता इतनी स्वतंत्रता है मनुष्य को वह लड़कर अपने को चिंतित कर सकता है लेकिन मनुष्य अपनी स्वतंत्रता का दो तरह से उपयोग कर सकता है मनुष्य अपने जीवन को परमात्मा की इच्छा से संघर्षमय बना सकता है तब उसका जीवन दुःख, पीड़ा और संताप का जीवन होगा  और अंततः पराजय फलित होगी और जब व्यक्ति अपने जीवन की स्वतंत्रता को परमात्मा को समर्पित कर देता है तो उसका जीवन आनन्द का, नृत्य का, गीत का जीवन होगा 

           परमात्मा की इच्छा को जाना नहीं जा सकता लेकिन एक हुआ जा सकता है और तब अपनी इच्छा खो जाती है और केवल परमात्मा की इच्छा ही रह जाती है 

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