Tuesday 28 July 2020

Nostalgia Yoga - विषाद योग ( अर्जुन और श्री कृष्ण )

           

 अर्जुन विषाद योग 


         क्या विषाद भी योग हो सकता है हाँ विषाद योग हो सकता है क्यूंकि वह आनंद का ही प्रतिरूप है मतलब आनंद का विपरीत रूप विषाद तो जब आनंद योग हो सकता है तो विषाद भी योग ही है 
         जेसे अगर सोने में मिटटी मिल जाये तो उसे कहना तो अशुद्ध सोना ही पड़ेगा वह मिटटी तो नहीं हो जायेगा हाँ वह अशुद्ध है लेकिन उसमे शुद्धता को प्राप्त होने का भाव शेष है अशुद्धि को जलाकर अलग किया जा सकता है और और सोना वापस सोना हो सकता है 
         तो विषाद योग इसलिए है की विषाद जलाया जा सकता है उसे ज्ञान के प्रकाश से हटाया जा सकता है योग बच सकता है आनंद की यात्रा हो सकती है कोई भी इतने गहरे विषद को प्राप्त नहीं हो गया है की वापसी नहीं हो सकती है एक महीन सी पगडण्डी हमेशा वापसी के लिए बची रहती है उस पगडण्डी का स्मरण ही योग है 
तो विषाद क्यों हो रहा है विषाद इसलिए हो रहा है की हमे कही गहरे चेतन में आनंद का स्मरण है यह भी इस बात का स्मरण है की में जो हो सकता हूँ वह में नहीं हो पा रहा हूँ  जो में पा सकता हु वह में नहीं पा रहा हूँ  जो संभंव है वह संभव नहीं हो पा रहा है इसलिए विषाद हो रहा है                                                                     इसलिए जितना ही प्रतिभाशाली व्यक्ति होगा वह उतने ही गहरे विषाद में उतरेगा सिर्फ जड़ बुधि या बुद्ध व्यक्ति या कृष्ण जेसा व्यक्ति विषाद रहित हो सकता है क्यूंकि जड़ बुधि को तुलना का उपाय नहीं होता और बुद्ध या कृष्ण इनसे परे है जिसे यह ख्याल है की आनंद संभंव है उसका विषाद भी गहरा होगा जिसे सुबह का पता है उसे रात का अन्धकार भी गहरा  होगा और जिसे रात का पता नहीं उसके लिए रात भी सुबह हो सकती है और रात भी उसके लिए ठीक मालूम होगी 
            अर्जुन की इस विषाद की स्थिति को भी योग कहा जा सकता है क्यूंकि यह विषाद का बोध भी स्वरुप के विपरीत दिखाई पड़ता है और ऐसा विषाद योग उस युद्धस्थल और किसी को नहीं हो रहा था लेकिन अर्जुन बहुत ही भाग्यशाली था की उनके पास श्री कृष्ण जेसा मार्गदर्शक था जिनकी वजह से अर्जुन उन विषाद के क्षणों से बाहर आ पाया था और जगत को गीता जेसा मनोशास्त्र का ग्रन्थ मिला जो की सही मायनो में मनुष्य की मनोस्थिति का वर्णन और निदान करने की क्षमता रखता है 
            अगर आज के मायनो में देखा जाये तो इसका ताजा उदहारण सुशान्त सिंह के रूप में देखा जा सकता है जिसको यह ज्ञात था की वह क्या हो सकता है लेकिन वह उन उच्चाईयों को कुछ कतिपय कारणों से नहीं छु पाया लेकिन उसके जीवन में कोई श्री कृष्ण जेसा मार्गदर्शक नहीं था जो की उसे इस विषाद की परिस्थिति से बाहर निकल पाए और इस विषाद ने सुशान्त सिंह को निगल लिया 



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