Secret of Life
Secret of Life |
जिस मनुष्य के मन में किसी भी प्रकार का लोभ होगा उसका भगवान से कोई सम्बन्ध होना तो सम्भव नहीं है लोभ का अर्थ क्या है यही की जो में हु उसमे तृप्ति नहीं कुछ और होना चाहिए कुछ और वह चाहे धन हो, यश हो या भगवान् खुद हो क्यूंकि जब तक मन में किसी भी प्रकार का लोभ होगा मन के भीतर तनाव होगा जो की आपको आनद से दूर कर देगा और आनंद नहीं तो अशांति और जहाँ अशांति वहा आप भगवान् को प्राप्त नहीं कर सकते क्यूंकि भगवान आपसे दूर तो है ही नहीं
अशांत मन कभी भगवान् को प्राप्त नहीं कर सकता क्यूंकि जब अशांत होगा तो वह इधर उधर दोड़ने लगेगा वह भगवान् को बाहर खोजेगा और खोजना तो उसको पड़ता है दोड़ना उसके लिए पड़ता है जो आपसे दूर हो जो अपने अंदर ही मोजूद हो उसके लिए दोडेंगे तो चुक जायेंगे
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तो कुछ इस तरह की वस्तुए होती है जिनको पाने के दोड़ना ही होगा जेसे धन की प्राप्ति के लिए, यश की प्राप्ति के लिए अगर यश पाना है तो उपाय खोजने होंगे , धन पाना है तो भी दोड - भाग करनी पड़ेगी लेकिन परमात्मा कहीं दूर नहीं है एक इंच का भी फासला नहीं है वह तो हमारे अंदर बहुत गहरे ताल में छुपकर रहता है जहाँ हम खड़े है वाही परमात्मा है हम वाही है जो वह अगर उसको बाहर खोजोगे तो और दूर हो जाओगे जिसे खोया ही न हो उसे खोजेंगे तो और दिक्कत पैदा हो जाएगी
हम सब वही खड़े हुए है जहाँ से हमे कहीं और जाने की जरुरत ही नहीं है लेकिन हमारा मन एक ही भाषा समझता है और वह है खोजने की दोड़ने की भाषा और जिसका चित हमेशा दोड़ने और खोजने में लगा रहता है वह गृहस्थ कहलाता है और गृहस्थ का कोई मतलब नहीं होता
और जो पाने की दोड़ने की भाषा छोड़ देता है और यह कहता है की सब प् लिया , सब पाया हुआ है वह सही मायनो में सन्यस्त है वाही सन्यासी है वर्ना तो केवल कपडे बदले गए है
लेकिन मन अभी भी कुछ पाना है कुछ खोजना है की धुन में लगा हुआ गृहस्त ही है
जिसे हम भगवान या जो कुछ भी कहते है उसको पाने के लिए यह समझ लेना चाहिए की उन्हें पाना नहीं जानना है यह फर्क समझ लीजिये उन्हें पाना तो असम्भव है क्यूंकि वह तो हमारे भीतर ही है और हम अपने भीतर तो केवल जान ही सकते है
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