जीवन क्या है - ३
-:जीवन और परमात्मा :-
सच तो यह है की जीवन के अतिरिक्त कहीं परमात्मा नहीं है जो व्यक्ति जीवन को साध लेता है वह ही परमात्मा को साध सकता है क्युकी जो जीवन को ही चुक जाता है वो जो अपने को ही नहीं जन पता है वो परमात्मा को केसे जानेगा इसका तो कोई उपाय ही नहीं है
जीवन को साध लेना ही धर्मं की साधना है जीवन में ही परम सत्य को अनुभव कर लेना मोक्ष को अनुभव कर लेना ही मोक्ष को उपलब्ध कर लेने की पहली सीडी है लेकिन अब तक का रुख उल्टा रहा है वह रुख कहता है जीवन को त्यागो लेकिन जीवन को त्यागने के बाद आप अपना सुधार केसे करोगे जीवन को नई उचाईयों पर पहुचाने के लिए जो साधन चाहिए वह हमारा जीवन ही है
लेकिन हम अपने जीवन का आदर ही नहीं करते क्यूंकि हमे यह सिखाया जाता है की यह जीवन तो नाशवान है इसलिए इसके बारे में नहीं सोचना सोचना है तो जीवन के बाद मोक्ष , स्वर्ग सही है सोचना चाहिए मोक्ष के बारे में लेकिन इसके लिए अगर हम इस जीवन का उपयोग ही नहीं करेंगे तो फिर मोक्ष प्राप्ति तो असम्भव है इसलिए जीवन को सार्थक बनाना ही उदेश्य होना चाहिए जीवन को आनंदमय बनाना ही जीवन का लक्ष्य होना चाहिए इसलिए जीवन को जीने की कला सीखो
सही मायनो में धर्मं जीवन जीने की कला है "आर्ट ऑफ़ लिविंग"
धर्म जीवन का त्याग नहीं असल में जीवन की अनंत गहराइयों में उतरने की कला है साधना है
धर्मं है जीवन का सम्पूर्ण साक्षात्कार
No comments:
Post a Comment